इस गुरुकुल की स्थापना ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी विक्रम संवत् 2052 तदनुसार 27 मई 1995 शनिवार से 29 मई सोमवार तक हुए गुरुकुल स्थापना समारोह के अवसर पर आर्य जगत के प्रसिद्ध विद्वान् शास्त्रार्थ महारथी पण्डित गंगाधर शास्त्री जी , डाक्टर व्यास नन्दन शास्त्री जी , प्रसिद्ध भजनोपदेशक श्री जयपाल सिंह जी , पण्डित श्री कपिल कुमार शर्मा जी , श्री कमलेश दिव्यदर्शी जी एवं नेपाल के विद्वान् ब्रह्मचारी वेद बन्धु जी के उपस्थिति में गुरुकुल की स्थापना हुई । दिनांक 6 दिसंबर 1995 को प्रथम बार आर्य समाज बड़ाबाजार कलकत्ता के अधिकारी श्री दीनदयाल जी गुप्त , पुरोहित पण्डित श्री ईश्वर दत्त जी वैद्य एवं आर्ष गुरुकुल कोलाघाट के आचार्य ब्रह्म दत्त जी गुरुकुल पधारे । आर्य जगत के प्रसिद्ध वैदिक विद्वान गुरुकुल कांगड़ी के प्रथम वेदोपाध्याय मिथिला विभूति चहुटा ग्राम वासी पण्डित शिव शंकर शर्मा काव्य तीर्थ जी के दौहित्र पूर्व शिक्षा मंत्री बिहार सरकार , पंडौल प्रखंड अंतर्गत गंधवार निवासी स्वतंत्रता सेनानी श्री दिगम्बर ठाकुर जी दिनांक 10 मार्च 1996 को प्रथम बार गुरुकुल पधारे । दिनांक 26 मई 1996 रविवार को गुरुकुल के प्रथम वार्षिकोत्सव का उद्घाटन आर्य समाज मुजफ्फरपुर के प्रधान आर्य रत्न श्री पन्ना लाल जी आर्य के द्वारा हुआ । आचार्य रामप्रवेश शास्त्री जी भी गुरुकुल पधारे । दिनांक 27 फरबरी 1997दिल्ली से प्रथम बार दयानन्द सेवाश्रम संघ की मंत्रिनि माता प्रेमलता शास्त्री जी , माता ईश्वर रानी जी , महामंत्री श्री वेदव्रत मेहता जी , आर बीर दल के वरिष्ठ प्रशिक्षक श्री हरि सिंह जी एवं ब्रह्मचारी जीव बर्धन जी गुरुकुल पधारे । दिनांक 28/2/1997 से 9/3/1997 तक चरित्र निर्माण शिविर एवं गुरुकुल के दूसरे वार्षिकोत्सव का उद्घाटन माता प्रेम लता शास्त्री जी के द्वारा हुआ । नालंदा से स्वामी अग्नि व्रत जी , मुजफ्फरपुर से भजनोपदेशिका माता धर्मशिला जी एवं पूर्वी चंपारण से आचार्य राम प्रवेश शास्त्री जी भी गुरुकुल पधारे । गुरुकुल के संस्थापकों में प्रमुख पण्डित अर्जुन प्रसाद शास्त्री जी ठें गहा खजौली एवं सेवा निवृत्त प्रधानाध्यापक श्री राम औतार यादव जी भी पूरे शिविर गुरुकुल में उपस्थित रहे । ।.
ऋग्वेद में मुख्य रूप से मंत्रों का संग्रह है, जिन्हें यज्ञों के प्राचीन आचरण के लिए उपयोग किया जाता है। इसमें भगवानों की स्तुति और प्राणी के जीवन के महत्वपूर्ण पहलुओं का वर्णन होता है।
यजुर्वेद यज्ञों के अनुष्ठान के मंत्रों का संग्रह है, जिन्हें पुरोहित यजमान के द्वारा उच्चरित किए जाते हैं ताकि यज्ञ सही तरीके से पूरा किया जा सके।
सामवेद में गीतों का संग्रह है, जो यज्ञों के अवसर पर गाए जाते हैं। इसका प्रमुख उद्देश्य यज्ञों के आचरण को सुन्दरता और भावनाओं के साथ प्रस्तुत करना है।
अथर्ववेद में औषधियाँ, तंत्र, और आध्यात्मिक ज्ञान के मंत्र हैं। यह वेद रोग निवारण, ज्योतिष, और शांति के लिए उपयोग किए जाते हैं।
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